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रविवार, 16 अगस्त 2015

एक नाराज गुरुदेव की चंद पंक्तियाँ...........

एक नाराज गुरुदेव की चंद पंक्तियाँ...................

राजनेताओं की बिरादरी तो चोरो की सिरमौर है,,,
पर कहते फिरते है यूं कि शिक्षक सारे चोर है।।
खुद की नाकामियों को तुम अपने
हाथों बांट रहे,,,
जिस डाली पर बैठे हो उसी डाली को काट रहे।।
सत्ता का असली घमंड तुम्हारे अन्दर छाया है,,
शिक्षा मंदिरों का मान तुम नीचों ने ही घटाया है।।
तोप, चारा, टैंक, क्या तुम कफऩ तक को खा गए,,,
भ्रष्टाचार के पितामह तुम वतन तक को पचा गए।।
राष्ट्र मर्यादाओं को तुमने कदम कदम पर तोड़ा है,,,
जिस महकमें के तुम रखवाले उस तक को तो नहीं छोड़ा है।।
तुम्हारें जैसो की इज्जत चौराहों पर उतारी जाती है,,,
पागल कुत्तों को सरेआम गोली मारी जाती है।।
कुंडली मार बैठे हो पदों पर फूट गई तकदीर यहीं,,,
राजनीति के आक्टोपसों! स्कूल तुम्हारी जागीर नहीं।।
गंदी राजनीति के अखाड़े तुमनेे विद्यालयों में खोल दिए,,,
विष भरे बोल तो खुद के सड़े मुँह से बोल दिए।।
शिक्षक थे तुम भी कैसे अपनी मर्यादा भूल गए,,,
राजनीतिक सिंहासन पर औकात
अपनी भूल गए।।
पहली शिक्षक माँ थी तुम्हारी कह
दो वो भी चोर है,,,
बाप चाचा ताऊ ने जो भी सिखाया कह दो सभी हरामखोर है।।
खुद को तुमने स्वयंभू राजा की छवि में जा कर कैद किया,,,
जिस थाली में खाया था उस थाली में जाकर छेद किया।।
करते फिरते हो जाकर गली गली जो शोर है,,,
कहते फिरते हो यूं कि शिक्षक सारे चोर है।।
गुरूजनों की पदरज का जिसने भी माथे पर चंदन कर डाला,,,
शिक्षक समाज ने उसका तन मन से अभिनंदन कर डाला।।
जब जब हमारे राष्ट्र पर संकट छाया है,,,
शिक्षक ने अपना दायित्व निभाया है।।
सोने की चिड़िया बनाने को सदियों से हमने जतन किए,,,
एक से बढकर एक राष्ट्र को हमने ही तो रतन दिए।।
जोतिबाफूले कहू,  चाणक्य कहूं समर्थ गुरू रामदास
या कहूं राधाकृष्णन,,,
द्रोण वशिष्ठ बाल्मीकी।
विद्यालयों में माँ बाप का किरदार
निभाता हूं,,,
इसीलिए सदियों से हर युग में पूजा जाता हूं।।
पर तुमने कभी मुझे डाकिया तो कभी मुझसे जनगणना करवाई है,
पोषाहार बनवा कर मुझ से
कभी पोलियो की दवा पिलवाई है।।
पर राष्ट्र हित में ये सारे काम जरूरी है,,,
पर तुमको लगता है ये हमारी मजबूरी है।।
शैक्षणिक कार्यों के अलावा कितने काम करवाते हो,,,
ट्रांसफर के नाम पर तुम ही हमारी तनख्वाह तक हड़प कर
जाते हो।।
मकड़जाल में उलझाकर
विद्यालयों को मकड़ी का जाला बना दिया,,,
एकीकरण समानीकरण के नाम पर शिक्षा को प्रयोगशाला बना दिया।।
बिना गुरू एक कदम भी चल दिए तो हाहाकार मच जायेगा,,,
शिक्षक सम्मानित नहीं होगा तो राष्ट्र में अँधकार मच जायेगा।।
कुछ भी बोलोगे तो सुन लें हम ऐसे भी मजबूर नहीं,,,
राष्ट्र निर्माता है हम कोई बँधुआ
मजदूर नहीं।।
शिक्षक के चरणों में गिरकर माफी मांगोेगे
तो वो तुम्हें माफ कर देगा,,,
नहीं तो इतिहास उठाकर देखो अगले चुनावों में फिर से वो पते साफ कर देगा।।
अरे इस जगत की तो शिक्षक एक सुनहरी भोर है,,,
भूल कर भी मत कहना अब कि शिक्षक सारे चोर है।।।।।

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